Tuesday, March 2, 2010

Hum Panchhi Unmukt Gagan ke

हम पंछी उन्मुक्त गगन के
- ShivMangal Singh Suman (शिवमंगल सिंह सुमन)

हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे ।

हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से ।

स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले ।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने
लाल किरण-सी चोंच खोल
चुगते तारक-अनार के दाने ।

होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सॉंसों की डोरी ।

नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो
लेकिन पंख दिए हैं तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो ।


This was a poem I read probably in my 8th Std. in School and still love it and can relate so much to it.

At times the poem also makes me feel nostalgic :( school days were so much fun.

I specially love the first two Stanzas…the first being :

Hum panchi unmukt gagan ke,
Pinjad bandh na gaa paayenge,
Kanak teeliyon se takrakar,
Pulkit pankh toot jaayenge


It speaks about being free so smoothly and softly. Isn’t this what we all want? Being free?

But….there is something which I don’t think “all” of us would want or not want. Like the poem says, that the bird doesn’t wish to live in a cage, even if it’s made of Gold.

In my case, I would always like my life to be simple, independent and free, and despite of all the riches in the world, life can be beautiful.

That shouldn’t be difficult? Right? :)

Wishes :)

11 comments:

Nihit Gupta said...

this was one of my fav poems and posting another one
shouting ye bhi .......ye bhi


कवि: गोपाल दास "नीरज"

छिप छिप अश्रु बहाने वालो
मोती व्यर्थ लुटाने वालो
कुछ सपनो के मर जाने से
जीवन नही मरा करता है

सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आंख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी

गीली उमर बनाने वालो
डूबे बिना नहाने वालो
कुछ पानी के बह जाने से
सावन नही मरा करता है

माला बिखर गई तो क्या
खुद ही हल हो गई समस्या
आँसू ग़र नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या

रूठे दिवस मनाने वालो
फटी कमीज़ सिलाने वालो
कुछ दीपों के बुझ जाने से
आंगन नही मरा करता है

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
के़वल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती

वस्त्र बदलकर आने वालो
चाल बदलकर जाने वालो
चंद खिलौनों के खोने से
बचपन नही मरा करता है

लाखों बार गगरियां फूटीं
शि़क़न न आई पर पनघट पर
लाखों बार कश्तियां डूबीं
चहल पहल वोही है तट पर

तम की उम्र बढाने वालो
लौ की आयु घटाने वालो
लाख करे पतझर कोशिश पर
उपवन नही मरा करता है

लूट लिया माली ने उपवन
लुटी न लेकिन गंध फूल की
तूफानों तक ने छेड़ा पर
खिड़की बंद न हुई धूल की

नफरत गले लगाने वालो
सब पर धूल उडाने वालो
कुछ मुखडों की नाराज़ी से
दर्पन नही मरा करता है

Leo Princess said...

Yeahh.....this was an awesome poem too...!! :)

More poems at : http://www.prayogshala.com/poems/

and school time poems at :
http://poems2remember.blogspot.com/search/label/Hindi

i also liked Kabir ke Dohe :)

ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय
औरन को सीतल करे आपहु सीतल होय :)

Keshri Nandan Nayak said...

Bade mushkil se yaad aaya hai
"Pushp Ki Abhilasha"

last 4 stanza is awesome

मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।।

Tushar Chauhan said...

सभी का कविता प्रेम देख हमें भी १ कविता याद आ गयी, अगर किसी को याद हो तो अच्छा है :P
हरिवंशराय बच्चन की "जो बीत गयी सो बात गयी" ! हम इसे नीचे चिपका रहे हैं :D

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई!

Nihit Gupta said...

tushar and nanhu da-----

APp dono ne meri among the best choices post ki hai..ooske liye hum apne kavi dil se apko ek kiss samarpit karte hai.

Jahaan na pahunche KAvi...wahaan pahunche Ravi :P

Admin said...

Hello, Anu thanks for following me on indiblogger network. really appreciated. nice blog you have here. Keep it up and Keep in touch :D

Nihit Gupta said...

हम साथ साथ है!!!

निहित गुप्ताजी

Leo Princess said...

वह ख़ून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं
वह ख़ून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं

-khooni hastakshar.

All the poems posted here were amongst my Fav :)and just added one more :)

Leo Princess said...

तुषार का कविता चिपकाना
निहित का खुले आम प्यार दिखाना
केशरी का बुद्धि पर जोर लगाना


कविता के प्रेम में हुए सब दीवाने
मन्त्र मुग्ध हुए हम सब बिना किसी पैमाने

-- अनु :) :P

Sameer Nafdey said...

great poems..

loved to have them again back in my life..

thnx anu

Leo Princess said...

It alwz feels good to remember the good old dayz :)